Wednesday, April 26, 2017

माहिया छंद ---सुनीता काम्बोज

माहिया छंद ---सुनीता काम्बोज 
1.
भर दिल में पीर गई
तेरी बात कही
इस दिल को चीर गई।

2.
कैसी कंगाली है
बजता ढोल यहाँ
अंदर से खाली है ।

3.
जीवन कव्वाली है
बजती जाती ये
सुख-दुख की ताली है ।

4.
कुछ तो डर जाते हैं
पर चलने वाले
इतिहास बनाते हैं ।

5.
सजदा कर आई हूँ
सूनी आँखों में
आशा भर आई हूँ।

6.
कोशिश बेकार गई
जीती शैतानी
मानवता हार गई।

7.
तेवर दिखलाती हैं
लहरें  नौका को
अब डर दिखलाती हैं ।

8.
चलने की तैयारी
आज चली हूँ मैं
कल है तेरी बारी ।

9.
हर बार बड़ी  कर दी
उसने नफरत की
दीवार खड़ी कर दी ।

10.
सबको पहचान लिया
छोटे जीवन में
कितना कुछ जान लिया ।

11.
जग ताने कसता है
प्यार तुम्हारा इन
गीतों में बसता है ।

12.
अब सेठ सताता है
फसलें डूब रही
वो ब्याज बढ़ाता है ।

13.
हर बार यही निकला
जीवन माटी सा
बस सार यही निकला ।

14.
हर ओर विवशता है
गूंगा अब देखो
बहरे पर हँसता है ।

15
जो कल थे मडराते
आज  मुसीबत में
वो पास नहीं आते ।


-०-

Thursday, April 13, 2017

ग़ज़ल


बालगीत


बाल कविता


ग़ज़ल


ग़ज़ल


दोहा


मुक्तक


बाल कविताएँ


माहिया छंद


सार छंद


ग़ज़ल


गीत


कविता


ग़ज़ल


गीत



कविता


ग़ज़ल


ग़ज़ल


ग़ज़ल


दोहे


ग़ज़ल


ग़ज़ल


बालगीत


ग़ज़ल सुनीता काम्बोज


ग़ज़ल


कविता सुनीता काम्बोज


ग़ज़ल सुनीता काम्बोज


थके पंछी