Saturday, May 20, 2017

कैसे हो रहा वायु प्रदूषण ........... अभियंता राजेश कुमार काम्बोज

अभियंता राजेश कुमार  काम्बोज

कैसे हो रहा वायु प्रदूषण

प्रिय पाठको पहले लेख में हमने जल प्रदूषण के बारे में जाना था । अब हम बात करते हैं वायु  प्रदूषण की, जैसा कि हम सब जानते हैं कि हर मनुष्य जीव जंतु एवं हमारी वनस्पति हमारे वातावरण में मौजूद वायु पर निर्भर करते हैं और अगर यह वायु  दूषित हो तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं । आइए सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते हैं, कि आखिर यह वायु प्रदूषण क्या है । वह सब तरह के  तत्व जो कि  मनुष्य,जीव-जन्तुओ एवं प्रकृति  के लिए हानिकारक हो और इस वातावरण में पाए जाते हों तथा जिनका हमारे भौगोलिक ढाँचे पर बुरा असर पड़े  उन्हें हम प्रदूषण तत्व कहते हैं । यह दो प्रकार के होते हैं । जिन्हें हम प्रथम (primary pollutants) और द्वितीय (secondary pollutants) श्रेणी के प्रदूषण तत्वों के नाम से जानते हैं । प्रथम श्रेणी के प्रदूषण तत्व वह होते हैं, जो किसी भी प्रदूषण स्त्रोत से सीधे तौर पर निकलते हैं तथा द्वितीय श्रेणी के प्रदूषण तत्व वह होते हैं, जो हमारे वायुमंडल में उपस्थित प्रथम श्रेणी के तत्वों की सूरज की किरणों के साथ या फिर किसी भी कारण से हुई रसायनिक क्रिया एवं प्रतिक्रिया से पैदा हो ।
और अब अगर हम बात करें इन प्रदूषित तत्वों के स्रोतों की तो वह भी दो प्रकार के होते हैं । पहले प्रकार के तत्व स्रोत  प्राकृतिक (natural sources) कहलाते हैं तथा दूसरी तरह के तत्व स्रोत मानवजनित (anthropogenic sources) कहलाते हैं । प्राकृतिक तत्व वह होते है जो सीधा प्राकृतिक स्रोतों से निकलते हों तथा मानवजनित तत्व वह होते हैं जो मनुष्य के द्वारा पैदा किए गए हैं । अब हम इन दोनों प्रकार के तत्वों के स्रोतों को विस्तार से जानते हैं । पहले प्रकृतिक स्रोतों के बारे में जानते हैं । प्राकृतिक प्रदूषण तत्व के स्रोतों में  ज्वालामुखी, जंगल में लगी आग, तथा बहुत सारे प्राकृतिक आपदाओं के कारण निकले धुए से एवं  जानवरों के गलने व सड़ने से जो जहरीले तत्व हमारे वातावरण में प्रवेश कर जाते हैं, और हमारे  वातावरण को दूषित कर देते हैं । वह प्राकृतिक प्रदूषण कहलाता है । अब अगर हम बात करें मानवजनित प्रदूषण तत्वों की तो जो धुँआ हमारे कारखानों  से निकलता है, उसमें यह सब तत्व पाए जाते हैं । दूसरा हमारे वाहनों से जो धुआँ निकलता है, वह भी प्रदूषण का कारण है । घरों में लकड़ी या फिर किसी भी प्रकार का इंधन जलाने से या फिर किसी भी प्रकार का कूड़ा करकट जलाने से जो धुआँ निकलता है वह सब प्रदूषण का कारण होता है । यह तो सब प्रदूषण के स्रोतों के बारे में जानकारी थी ।
प्रथम श्रेणी के प्रदूषण तत्वों  में पाए जाने वाले तत्व में मुख्य तौर पर सल्फर ऑक्साइड यानि सल्फर डाई-ऑक्साइड सल्फर ट्राई-ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइडस यानि नाइट्रोजन मोनो-ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड एवं कार्बन ऑक्साइडस यानि कार्बन मोनो-ऑक्साइड, कार्बन डाई-ऑक्साइड आदि । इन सबके अलावा जो भी सूक्ष्म कण जिनका आकार 0.01 माइक्रोमीटर से 10 माइक्रोमीटर तक हो और वह हमारे वायुमंडल में पाए जाएँ वह प्रथम श्रेणी के प्रदूषित तत्व कहलाते हैं । किसी भी प्रकार का धुआँ एवं धुंध जो हमारे वायुमंडल में पाई जाए वह भी प्रथम श्रेणी के प्रदूषण में आते है । घरों एवं कारखानों से निकलता धुआँ खेतों में जलाए गए फसल के अवशेष तथा अस्पतालों से निकला कचरा जलाने से निकला धुआँ यह सब प्रथम श्रेणी के प्रदूषण में आता है ।अब अगर हम बात करें दूसरी श्रेणी के प्रदूषण तत्वों की तो जो प्रदूषण तत्व प्रथम श्रेणी के तत्वों का आपस में मिलकर क्रिया करने के बाद जो प्रदूषित तत्व बनते हैं उन्हें हम दूसरी श्रेणी के प्रदूषण तत्व कहते हैं । अगर उदाहरण के तौर पर बात करें तो वातावरण में उपस्थित वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (volatile organic compounds), नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, कार्बन ऑक्साइड एवं ओजोन की क्रिया एवं प्रतिक्रिया से जो भी प्रदूषित तत्व पैदा होते हैं एवं इसके अलावा जो भी प्रदूषित तत्व आपस में क्रिया करके नये प्रदूषित तत्व पैदा करें उन्हें हम दूसरे दर्जे  के प्रदूषित तत्व कहते हैं । यह सब प्रदूषित तत्व किस प्रकार से हमारे शरीर पर और हमारे  वातावरण पर और हमारे जीव-जंतुओं पर असर करते हैं इसे  और अधिक  गहराई से जानने की जरुरत है ।


अभियंता राजेश कुमार  काम्बोज
अधिस्नातक  पर्यावरण विज्ञानं एवम् अभियांत्रिकी
(M.Tech. in Environment Science and Engineering)
Department of chemical Engineering, SLIET Longowal
Distt. Sangrur Punjab- 148106. India.

Mobile no.  09779773491, 01672253707



Sunday, May 14, 2017

कैसे हो रहा जल प्रदूषण------------अभियंता राजेश कुमार काम्बोज


 अभियंता राजेश कुमार  काम्बोज



 कैसे हो रहा जल प्रदूषण 

आज के इस दौर में जल प्रदूषण हमारे लिए एक विकट समस्या के रूप में सामने आ रहा है। इस समस्या का यदि समय रहते समाधान नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ी को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी । हम जिस पानी का सेवन कर रहे हैं उसी पानी पर हमारे जीव-जन्तु भी निर्भर करते हैं। बढ़ रहे कारखाने एवम् गलत तरीके से पानी का इस्तेमाल पानी के प्रदूषण का कारण है।       
आज विभिन्न प्रकार के कारखानों से आ रहा गन्दा पानी अनेक प्रकार के रसायनों से दूषित हो रहा है । उदाहरण के तौर पर लें तो जो पानी पेपर मिल से निकलता है उसमें अधिक मात्रा में सल्फर पाया जाता है कुछ अन्य रसायन जैसे लिगनिंन,हमी सेल्यूलोससोडियम हाइड्रोक्साइड तथा वो सभी रसायन जो पेड़ों में पाए जाते हैं । इन रसायनों के मिल जाने के कारण जो दूषित पानी इन कारखानों से बहार आता है उसका बायो कैमिकल ऑक्सीजन डिमांड तथा कैमिकल डिमांड  मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और यह पानी जिस भी पानी के स्रोत में मिल जाता है उस पानी को भी जहरीला कर देता है । यह पानी आज के दौर में हमारे लिए चुनौती बना हुआ है ।
इसकी वजह से हमारे पानी के स्रोतों का टी. डी. अस.(total dissolved solids) भी बहुत मात्रा में बढ़ा हुआ है जो कि मनुष्य को अनेक प्रकार के कैंसर जैसे भयानक रोग प्रदान कर रहा है । भारत में इस तरह के बहुत सारे क्षेत्र पाये जाने लगे है जहाँ का पानी पीने से लोगो में कैंसर पाया जा रहा है । उदाहरण के तौर पर देखा जाये तो पंजाब के बरनाला एवम् बठिंडा के आस पास के क्षेत्रो में पानी का स्तर इसी प्रकार का पाया गया है। इन सब समस्याओं से निपटने के लिए आज हमें बहुत सतर्क रहने की  आवश्यकता  है और उन सभी कारखानों पर हमें और हमारी सरकार को दृष्टि रखनी होगी जो अपने दूषित पानी को सीधे ही हमारे जल स्रोतों में मिला रहे हैं ।  हमारा इस समस्या से आज का समाधान ही हमारी  आने वाली पीढ़ियों के लिए इस अमूल्य पेय जल को बचा पाएगा  । जो ठोस कचरा पेपर मिल से निकलता है अगर हम उसे ऐसे ही धरती के तल  पर फैला  देंगे तो जब हमारा बरसात  का पानी या अन्य स्रोतों से निकला पानी  इसके संपर्क में आयेगा तो उसमें भी वो सभी बीमारियों के कीटाणु एवम् रसायन मिल जायेगे जो इस प्रकार के कारखानों  में इस्तेमाल होते हैं।
यही मिश्रित रसायन पानी के पी. एच. की  मात्रा  को भी बढ़ा देते है  यदि अम्लीय रसायन पानी में मिल जाये तो पानी की पी. एच. कम हो जाती है और यदि क्षारकीय रसायन पानी में मिल जाये तो पानी की पी. एच. को बढ़ा  देते हैं । जो हमारे लिए बहुत घातक है क्योंकि अगर हम बात करे (WHO)यानि वर्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की तो जो नापदंड इसके अनुसार हमारे पीने के पानी के होने चाहिये वह होते हैं साढ़े छ:  से साढ़े आठ पी. एच. यानि जो पानी हम पीते  हैं वह या तो न्यूट्रल होना चाहिए या फिर हल्का  सा क्षारीय ।  हमारे लिए यह बहुत जरुरी हो जाता है कि हमारे पानी का यह गुण उसमें होना चाहिए । इसे हम तभी बचा पायेगे यदि हम समय रहते इस पर ध्यान दें।
अब अगर हम बात करे टी. डी. एस. की यानि टोटल डिसोल्वड सोलिड्स की तो जो पानी हमारी जमींन  के अंदर से हमें प्राप्त होता है उसके अंदर यह मात्रा बहुत ज्यादा पाई जाती है बहुत से पानी के नमूनों का परीक्षण करके हमें पता चला है कि जो पानी हमारी धरती के अन्दर से हमें प्राप्त हो रहा है उसका टी.डी.एस.700 पी.पी.एम.से 1000 पी.पी.एम.(Parts per million) के बीच आता है जो कि निर्धारित मात्रा से बहुत अधिक है क्योंकि पीने के लिए जो पानी सही है उसका पी.पी.एम. 50 से 250 के बीच होना चाहिए । अत: यह पानी भी पीने के काबिल नहीं बचा है । इससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ जैसे कुपोषण एवम् पेट से सम्बंधित बीमारियाँ यहाँ तक कि कैंसर जैसे रोग भी इस तरह के पानी के सेवन से हो रहे हैं । यह हमारे लिए एक विकट  समस्या बनता जा रहा है अगर ऐसे ही हमारे कारखानों का पानी, धरातल के पानी से मिलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम बड़ी-बड़ी बीमारियों से ग्रसित हो जाएँगें  और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इस धरती पर जीवन यापन नहीं कर पाएगी ।
अत: इन सब समस्याओं की रोकथाम करने के लिए हमारा जागरूक होना बहुत जरुरी है और यह हमारे पर्यावरण  बुद्धिजीवियों का पहला दायित्व बनता है कि वह उन सब कारखानों पर अपनी पैनी नजर रखें  जो सही से पर्यावरण नियमों का ध्यान नहीं रखते  ।

अभियंता राजेश कुमार  काम्बोज
अधिस्नातक  पर्यावरण विज्ञानं एवम् अभियांत्रिकी
(M.Tech. in Environment Science and Engineering)
Department of chemical Engineering, SLIET Longowal
Distt. Sangrur Punjab- 148106. India.
Mobile no.  09779773491, 01672253707

                                                       

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