Saturday, January 11, 2020

यज्ञ वैदिक धर्म का मेरुदंड है। -----आलेख







यज्ञ सम्पूर्ण रूप से एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। सनातन धर्म में हर शुभ कार्य का आरम्भ यज्ञ द्वारा होता है। यज्ञ वैदिक धर्म का मेरुदंड है। परन्तु आज के भाग-दौड़ के जीवन में मानव वैदिक ऋषियों के इस अविष्कार से विमुख होता जा रहा है। यज्ञ पर हुए शोधों से आज विदेशी वैज्ञानिक भी अचंभित हैं।  यज्ञ के लाभों से प्रभावित होकर अमेरिका के वाशिंगटन शहर में अग्निहोत्र नाम विश्वविद्यालय  की स्थापना की गई है। 
 वैज्ञानिकों ने अपने शोधों में पाया कि आम की लकड़ी , शुद्ध घी, और औषधियों  द्वारा  यज्ञ करते समय अग्नि का तापमान 400 डिग्री के आसपास पहुँच जाता है तथा  ओजोन गैस का निर्माण होता है तथा वायु प्रदूषण दूर होता है एवं जल का शुद्धिकरण होता है। एक बार का यज्ञ आठ किलोमीटर तक की वायु शुद्ध करता है । अमेरिका की  "अग्निहोत्र" यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का शोध  है कि फसलों  के सभी प्रकार के रोगों का रामबाण इलाज यज्ञ है। उन्होंने पाया कि 200 एकड़ खेतों के बीच किये गए यज्ञ के प्रभाव से फसल उत्पादन में अपार वृद्धि हुई  तथा पौधों  के विकास में तेजी से बढ़ोतरी हुई । यज्ञ के प्रभाव से धरती की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि देखी गई है। इसलिए उन्होंने यज्ञ  को "थैरेपी फार्मिंग" नाम दिया है ।

भारतीय वैज्ञानिकों ने भी अपने अनेक शोधों द्वारा यज्ञ के लाभों का उल्लेख किया है ।  विश्व के अनेक देश आज भारतीय यज्ञ  से  प्रभावित है । भारतीय वैज्ञानिकों ने आधे घण्टे यज्ञ के दौरान कुछ प्रयोगों में पाया कि-  यज्ञ के पहले  एक कमरे में  कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर 11 पी.पी. एम. था  जो यज्ञ के बाद घटकर .01 पी.पी. एम. रह गया  तथा कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर  यज्ञ के बाद  1280 पी. पी. एम. से घटकर 471  पी. पी. एम.रह गया ।
विशेष औषधियों द्वारा यज्ञ करने पर पाया गया कि यज्ञ निकलने वाली ऊर्जा, फंगल, मलेरिया,  टायफाइड, डेंगू , त्वचा सम्बन्धी आदि गम्भीर व्याधियों के विषाणुओं को नष्ट करती है । प्रतिदिन यज्ञ के प्रभाव से मनुष्य के देवत्व गुणों में वृद्धि होती है तथा मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
पंचतत्वों में अग्नि तत्व का एक प्रमुख गुण है कि जो पदार्थ अग्नि में डाला जाता है, अग्नि  उसका गुण कई गुना बढ़ा देती है यानी अग्नि में अर्पित की गई जड़ी-बूटियाँ अणुओं-परमाणुओं के रूप मे अति सूक्ष्म होकर समस्त सृष्टि के समस्त जीवों तक पहुँच जाती हैं । अगर अग्नि में कोई मिर्च डाल दी जाए तो सूक्ष्म रूप में हवा में घुलकर आसपास सभी लोगों  को प्रभावित करती है। इसी प्रकार अगर अग्नि में प्लास्टिक, पेट्रोल आदि प्रदूषण बढाने वाले पदार्थ डाले जाए तब वह कई गुना प्रदूषण पैदा करते हैं। इसलिए यज्ञ की अग्नि में बलवर्धक, बुद्धिवर्धक,पुषिवर्धक, रोगनाशक औषधियाँ डाली जाती हैं।  यज्ञ की अग्नि में डाले पदार्थ मानव, जीव-जंतु, पेड़- पौधों, जल- वायु आदि सभी तत्वों  पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। शास्त्रों के अनुसार यज्ञ में चार प्रकार के  पदार्थ अग्नि को समर्पित किए जाते हैं-सुगन्धिकारक, पुष्टिकारक, मिष्ठीकारक, रोगनाशक ।
यज्ञ के लिए श्रीकृष्ण जी का  गीता में ये  श्लोक वर्णित है

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।

 अर्थात- यज्ञ का अनुभव करने वाले श्रेष्ठ मनुष्य सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाते हैं। परन्तु जो केवल अपने लिये ही पकाते अर्थात् सब कर्म करते हैं, वे पापी लोग तो पाप का ही भक्षण करते हैं।
भगवान कृष्ण जी एवं आचार्य चाणक्य ने कहा है कि-
जिस घर मे यज्ञ नहीं होता वह घर श्मशान के समान है
अथर्ववेद, यजुर्वेद आदि ग्रन्थों में यज्ञ के के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है ।
वैदिक काल से मानव जो भोजन ग्रहण करता था उसका कुछ अंश अग्नि को अर्पित करके ही भोजन ग्रहण करता था। प्राचीन काल में चूल्हे पर भोजन पकाते हुए हमारी दादी-नानी प्रथम रोटी की पाँच आहुतियाँ अग्नि में डालती थी परंतु आज इस अनमोल परम्परा का लोप होता जा रहा है । वैदिक ग्रन्थों में अनेक रोगों और अलग-अलग मौसम  के लिए अलग-अलग प्रकार की औषधियों द्वारा यज्ञ करने की विधियाँ वर्णित हैं। शास्त्रों में  यज्ञ के कुंड और यज्ञ में प्रयोग होने वाले पात्रों का भी उल्लेख मिलता है। 
यज्ञ के अभाव में आज अनेक प्रकार के प्रदूषण, अनेक शारीरिक और मानसिक बीमारियों ने मानव जीवन में उथल-पुथल मचा रखी है। आज मानव जीवन के साथ-साथ समस्त प्रकृति अस्वस्थ दिखाई देती है । बिना जड़ों के संस्कार रूपी वृक्ष मुरझा रहा है । अगर हम पुनः अपनी सृष्टि को संतुलित करना चाहते हैं तो हमें यज्ञ की परम्परा को जीवन का अंग बनाना होगा । आज बड़े महानगर प्रदूषण से पीड़ित हैं , एकमात्र यज्ञ ही इस समस्या से छुटकारा दिलाने में सक्षम है। आज हर घर में पूजा के समय जलने वाला दीपक एवं धूप भी लघु यज्ञ का प्रतीक है परन्तु यह तभी प्रभावी है अगर हम शुद्ध घी का प्रयोग कर शुद्ध भावना से इसे प्रज्वलित करें ।
सुनीता काम्बोज






थके पंछी