Monday, May 7, 2018

साहित्य वाटिका पत्रिका ---दो ग़ज़लें 20 18


मन जलता है --कविता

कविता 
कैसे करूँ रसीली बातें,मन जलता है
जलते दिन हैं जलती रातें ,मन जलता है
लँगड़ाता कानून देख कर ,मन जलता है
अपनों का ये खून देखकर,मन जलता है
आजादी का जश्न अधूरा, मन जलता है
चाँद नहीं उगता अब पूरा,मन जलता है
गया विदेशों में धन अपना, मन जलता है
बस वादों की माला जपना, मन जलता है
पत्थर ढोता अब ये बचपन ,मन जलता है
बातों में बस है अपनापन,मन जलता है
कहाँ गई वेदों की शिक्षा ,मन जलता है
राजा माँग रहा भिक्षा ,मन जलता है
उनके घर सोने की थाली,मन जलता है
झोपड़ियों में क्यूँ कंगाली ,मन जलता है
मज़हब पर है खूब सियासत,मन जलता है
नहीं छूटती उनकी आदत,मन जलता है
रोज उतरता चीर देखकर ,मन जलता है
भारत की तस्वीर देखकर, मन जलता है
सुनीता काम्बोज

बाबू जी का भारतमित्र पत्रिका 2018 ..हरियाणवी ग़ज़ल





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