बेचारा इंसान
भूखा ही जन्मा
भूखा ही लौट गया
इंसान की भूख
इंसान को डराती है
अंतड़ियाँ सिकुड़ जाती है
अगर किस्मत से कभी
पेट भर गया
नई भूख उपजती है
लाख डकार के बाद भी
खोपड़ी नहीं रजती है
जीवन भर इंसान
भूख से लड़ता है
कभी तन की भूख
कभी मन की भूख
कभी धन की भूख
सब कुछ पाकर भी
सब कुछ पाकर भी
तृप्त न हो पाया
भूखा जन्मा
भूख लिए मर गया ।
सुनीता काम्बोज©
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
भूख की सही सही परिभाषा मेरे समझ में आज तक नहीं आ पायी...
ReplyDeleteसमुन्दर भर रहा है पेट क्यों नही...
सुन्दर रकबा
भूख की सही सही परिभाषा मेरे समझ में आज तक नहीं आ पायी...
Deleteसमुन्दर भर रहा है पेट क्यों नही...
सुन्दर रचना
बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
न जाने कौन कौन सी भूख सताती इंसान को ।
ReplyDeleteविचारणीय रचना
सही सटीक रचना।
ReplyDeleteसुंदर।
सही कहा भूखा ही जन्मा और भूखा ही मन जाता है इंसान
ReplyDeleteएक के बाद एक तृष्णा
बहुत सुन्दर एवं विचारणीय सृजन।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरणीया मैम, बहुत सुंदर व सटीक कविता। मनुष्य की भूख कभी खत्म नहीं होती,केक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी जाग जाती है। आशा है कि हम इस लोभी भूख को छोड़ कर संतोष अपना लें। मेरी नानी कहती है यदि सन्तोष है तो सब कुछ है। बहुत-बहुत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
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