Sunday, August 22, 2021

इंसान की भूख

बेचारा इंसान 
भूखा ही जन्मा
भूखा ही लौट गया
इंसान की भूख
इंसान को डराती है
अंतड़ियाँ सिकुड़ जाती है
अगर किस्मत से कभी
पेट भर गया
नई भूख उपजती है
लाख डकार के बाद भी
खोपड़ी नहीं रजती है
जीवन भर इंसान
भूख से लड़ता है
कभी तन की भूख
कभी मन की भूख
कभी धन की भूख
सब कुछ पाकर भी
सब कुछ पाकर भी
तृप्त न हो पाया
भूखा जन्मा
भूख लिए मर गया ।
सुनीता काम्बोज©

9 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. भूख की सही सही परिभाषा मेरे समझ में आज तक नहीं आ पायी...
    समुन्दर भर रहा है पेट क्यों नही...
    सुन्दर रकबा

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    1. भूख की सही सही परिभाषा मेरे समझ में आज तक नहीं आ पायी...
      समुन्दर भर रहा है पेट क्यों नही...
      सुन्दर रचना

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  3. बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  4. न जाने कौन कौन सी भूख सताती इंसान को ।
    विचारणीय रचना

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  5. सही सटीक रचना।
    सुंदर।

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  6. सही कहा भूखा ही जन्मा और भूखा ही मन जाता है इंसान
    एक के बाद एक तृष्णा
    बहुत सुन्दर एवं विचारणीय सृजन।

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  7. आदरणीया मैम, बहुत सुंदर व सटीक कविता। मनुष्य की भूख कभी खत्म नहीं होती,केक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी जाग जाती है। आशा है कि हम इस लोभी भूख को छोड़ कर संतोष अपना लें। मेरी नानी कहती है यदि सन्तोष है तो सब कुछ है। बहुत-बहुत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।

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