परिंदों को
रोक नहीं सकती
सरहदें
उनकी है सारी धरती
और सारा आसमान
उनका है
सारा समुंदर
सारी नदियाँ
कभी वे बैठ जाते
मन्दिरों के गुम्मद पर
कभी मस्जिद के मीनारों पर बैठ
सुनते आजान
कभी गुरुद्वारे के द्वार पर उड़ आते
कभी चर्च की ओर मुड़ जाते
जो भी प्यार लुटाता
उसी के हो जाते
निर्धन, धनवान
जो भी देता
भाव से खाते
प्रेम का जो गीत परिंदे गाते
हम बदकिस्मत इंसान
उसे सुन नहीं पाते ।
सुनीता काम्बोज©
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