Sunday, June 11, 2017

गीत ---सुनीता काम्बोज

गीत

सुनीता काम्बोज 
           गीत 

बैठूँगी नजदीक तुम्हारे
और तुम्हारा मौन सुनूँगी

छूट गए जो इन हाथों से
ढूँढ रही हूँ उन लम्हों को
बन कर मैं चंचल सी नदिया
हरपल तेरे साथ चलूँगी
बैठूँगी...

साँसों की लय बतलाएगी
मन की पीड़ा बह जाएगी
धड़कन का संगीत बजेगा
उर के सब जज्बात पढूँग
बैठूँगी...
                                 
आँखों के प्याले छलकेंगे
निर्मल से मोती ढलकेंगे
तुम हिम्मत बन जाओ मेरी
टूटे सारे ख़्वाब बुनूँगी
बैठूँगी..

 सुनीता काम्बोज .

2 comments:

  1. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

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    1. सादर धन्यवाद संजय भास्कर जी ।

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