Tuesday, December 12, 2017

मनोरम छंद

सुनीता काम्बोज
   मनोरम छंद

आ गए हैं मेघ काले
छा गए हैं मेघ काले
गड़गड़ाते थरथराते
भा गए हैं मेघ काले


नाचनें  तरुवर लगें हैं
इस हवा को पर लगे हैं
देख कर नादान पंछी
लौटने अब घर लगे हैं

रौशनी अब खो गई है
रात काली हो गई है
छुप गया है चाँद भी अब
चाँदनी अब सो गई है

जीव हैं भयभीत सारे
कुछ लबों पर गीत प्यारे
इस धरा भी जानती है
बादलों के ये इशारे  

लग रहा है आज अम्बर
ज्यों उमड़ता सा समन्दर
उठ चली चंचल हिलोरे
आ रहे जैसे बवंडर


सुनीता काम्बोज 

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थके पंछी