रक्षा बंधन -गीत
बड़ा निश्छल ,बड़ा पावन ,बहन और भाई का बंधन
तुझे ही देखके लगता कि जैसे आ गया बचपन
कलाई पर तुम्हारी मैं ये अपना प्यार बाँधूँगी
तू चमके चाँद -सूरज -सा यही वरदान माँगूँगी
जिए जुग-जुग मेरा भैया ,मिले जग की सभी खुशियाँ
तेरे ग़म भी मुझे दे दे मैं रब से ये ही बोलूँगी
नजर तुझको न लग जाए लगा दूँ आँख का अंजन
तुझे ही देखके लगता कि जैसे आ गया बचपन
मेरी आँखों का सूनापन नही वो देख पाता है
मेरी आँखों में आँसू हो तो खुद ही छटपटाता है
शरारत से अभी भी वो नही यूँ बाज है आया
बड़ा होकर भी खुद को वो सदा छोटा बताता है
बहन तेरी ये कुमकुम- सी ये भाई है मेरा चन्दन
तुझे ही देखके लगता कि जैसे आ गया बचपन
हो मन उसका अगर भारी, पिता माँ से छिपाता है
किसी को भी नहीं कहता ,मुझे आकर बताता है
सुनीता डाँट देती है तो मुँह अपना फुला लेता
अगर मैं रूठ जाती हूँ ,मुझे अक्सर मनाता है
उसी की ही महक से तो मेरा घर भी लगे उपवन
तुझे ही देखके लगता कि जैसे आ गया बचपन
सुनीता काम्बोज
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