Wednesday, December 13, 2017

भाई-बहन का अनमोल स्नेह

भाई-


पिताजी की छवि दिखती वो माँ का रूप लगता है

मेरा भैया -सा भाई तो नसीबों से ही मिलता है



कभी लगता गुरु- सा वो, कभी मेरी सहेली सा

मेरी खुशियाँ रहे क़ायम, दुआ वो रोज़ करता है


ये जिम्मेदारियाँ सारी निभाता वो सदा घर की

है सारी ही उम्मीदों पर ,खरा हरदम उतरता है


तिलक तुझको लगा दूँ मैं ,आ तेरी आरती करके

निग़ाहों में मुझे उसकी सदा ही फ़र्ज़ दिखता है


सुनीता की दुआएँ हैं उसे कोई न दुख आए

मुझे तो चैन मिल जाता ,वो जब फूलों-सा हँसता है

सुनीता काम्बोज

(चित्र गूगल से साभार )


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