Wednesday, December 13, 2017

ये काली रात

(चोका)
सुनीता काम्बोज

 काली ये रात
काली चादर लिये
फिरती रही
रँगरेज न मिला
रँग दे इसे
लाल,नारंगी,हरा 
दर्पण  देखा 
अचरज क्यों हुआ
जानती थी वो
काले रंग पर क्या
चढ़ पाया है
कोई दूसरा रंग
 कुदरत ने 
उस पर सजाए
स्वर्णिम तारे
रात खिलखिलाई
तृप्ति मन ने पाई।

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