नारी के बिना सारा संसार अधूरा है
जीवन भी अधूरा है घर -बार अधूरा है
मन्दाकिनी के निर्मल ये नीर के जैसी है
ये त्याग समर्पण की तस्वीर के जैसी है
दुर्गा है यही काली ये मेनिका रति है
लैला ये कभी सोहनी ये हीर के जैसी है
नारी के बिना जग का शृंगार अधूरा है
इस--
आँखों में भरा दरिया ये गीत सुनाती है
जो बाँधती है बन्धन उनको ये निभाती है
गहरा ये समंदर है अनबूझ पहेली है
संवेदना जो सोए नारी ही जगाती है
नारी के बिना हर इक त्योहार अधूरा है
इस—
संघर्ष भरा जीवन चुपचाप सहा करती
महिमा बखानते है सूरज ये चाँद, धरती
जननी है इसे सारे वेदों ने बखाना है
सुख बाँटती ये जग के संताप सदा हरती
शिव का सती के बिन ये किरदार अधूरा है
इस—
सुनीता काम्बोज
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