Thursday, February 22, 2018

कृति : खग समुझै , कवयित्री : रेखा रोहतगी

कृति   :  खग समुझै(हाइकु संग्रह)  

कवयित्री : रेखा रोहतगी

विधा  :  हाइकु संग्रह

मूल्य :   150.00 रुपए

प्रकाशक  : अमृत प्रकाशन ,शाहदरा-दिल्ली - 10032
               दूरभाष- 22325468

समीक्षक - सुनीता काम्बोज



खग समुझै खग की भाषा अर्थात पंछी,पंछी की भाषा समझता है और हाइकु की गहनता भी वही समझ सकता है जिसने इसके अंदर छुपे तथ्य को महसूस किया हो । प्रसिद्ध कवयित्री रेखा रोहतगी जी का हाइकु संग्रह "खग समुझै" अपनी मीठी थाप मन पर अंकित कर गया । यह हाइकु संग्रह वर्षों की साहित्य  तपस्या से प्राप्त दुर्लभ फल है जिसको पढ़ मन में अनेक भाव जगे  । हाइकु विधा ने पिछले कुछ वर्षों से बुलन्दी तक का सफर तय किया है। जिस प्रकार परिवार का छोटा शिशु सभी को सर्वाधिक प्रिय होता है उसी प्रकार यह तीन पँक्तियों की कविता आज सर्वप्रिय है ।  हाइकु लिखने के लिए चिन्तन की सबसे ज्यादा आवश्यकता  होती है । अपने भावों को  तीन पँक्तियों में बाँधकर पूर्ण अर्थ के साथ   लिखना  सचमुच बहुत बड़ा इम्तिहान है। रेखा रोहतगी जी ने  इस इम्तिहान से गुजर कर पाठकों को यह सुंदर उपहार दिया है "खग समुझै" हाइकु संग्रह की काव्य की नदी मीठी और शीतल है इस संग्रह में अनेक भाव विभोर करने वाले हाइकु पढ़ने को मिले । कवयित्री ने  विविध विषयों पर मनोहारी हाइकु रचे।
लेखनी चले / हाइकु हंस तैरें / काव्य ताल में ।
तेरा वन्दन/  करके हो जाए है/ मन चंदन ।
उपवास में / चुगली खाएँवैसे/ निराहार है ।
होनी रहेगी / होकरक्या पाएगा /धैर्य खोकर ।

कवयित्री ने मन के ताल में हाइकु को हँस की उपमा दी है । यह हाइकु उनके कोमल भावों का स्पर्श करवाते हैं। ईश्वर के वन्दन से मन महकने लगता है । कवयित्री ने उपवास करके निंदा में व्यस्त रहने वालों को सावधान किया है । और मानव को धैर्यवान रहने का संदेश दिया है ।

जी लेना ऐसी / ज़िन्दगी कोतपस्या/ नहीं तो क्या है ।
काजल नहीं /नींद नहीं ,आँखों मे /आँसू ही आँसू ।
राह तकते / दूखन लागे नैन/झूठे हैं बैन ।

हाइकु में विरह के दर्द को बयाँ करते हुए कवयित्री कहती है कि न आँखों मे काजल है और न नींद सिर्फ आँसू ही आँसू है । प्रियसी के नयन राह निहारते हुए दुखने लगे है । बहुत भावपूर्ण ढंग से विरह वेदना को दर्शाया गया है।

वे चाहें फूल/ बिछाते जो शूल / कैसा चलन !
मुझसे ऊँचा/ ही उठे मेरा बेटा / ये चाहे पिता ।
बातों बातों में/ बात बिगड़ जाए / बन भी जाए ।
हाइकु धार/बनके तलवार/ करती वार ।
रेखा रोहतगी जी के हाइकु रिश्तों की मधुरताउद्देश्यात्मकता,आशावादिताप्राकृतिक सौन्दर्यजीवन का  सारशहरीकरणभक्ति रस आदि भावों से परिपूर्ण हैं।  हाइकु के गहरे प्रभाव को देख कवयित्री ने हाइकु को तेजधार तलवार कहा है क्योंकि जब हाइकु में छिपे मर्म का  दर्शन होता है तब हाइकु तलवार से कम नहीं होते  । मैंने पहली बार "खग समुझै"हाइकु संग्रह में हाइकु सोपान पढ़ा यह कवयित्री की रचनाशीलता का बेजोड़ नमूना है।  हाइकु की अंतिम पँक्ति को लेकर अगला हाइकु रचना जैसे :
कतरा धूप/ न उतरे आँगन / ऊँचे भवन।
ऊँचे भवन/ जटिल है जीवन/ विक्षुब्ध मन ।
विक्षुब्ध मन / जीवन उलझन/ श्रान्त है तन ।
श्रान्त है तन / प्यासा रहा ये मन / बीता यौवन 
एक पँक्ति दूसरे से एक सीढ़ी की भाँति जुड़ी हुई है इससे हाइकु की सुंदरता और ज्यादा निखर कर सामने आई है जब इन्हें लगातार पढ़ा जाता है तो इनकी गेयता और उच्च भाव में कवयित्री की  उच्च साहित्य साधना का झलक पाकर मन यही पर ठहर जाता है ।इस हाइकु संग्रह में हाइकु गीत माँ सरस्वती,कहे तुलसीकामनामायाजग का मेलाजादूगरमहके मन,दीया बातीबुढापामन उदासकवि के शब्द आदि हाइकु गीत तारीफ़े काबिल  हैं ।
दुःख-सुख का मेला
हिंडोला झूलें हम
जग मेला है

भीड़ का रेला
चले राही अकेला
जग है मेला

बचना बाबू !
पग-पग झमेला
जग है मेला
इन गीतों की लयबद्धता में अदभुत कशिश है । गीतों की सरसतामाधुर्यऔर शब्द संरचना देख ऐसा महसूस होता है जैसे कानों में  माँ शारदे की वीणा के स्वर गूँज उठे हो ।
अंत मे रेखा रोहतगी जी को इस हाइकु संग्रह की अनन्त बधाई । ईश्वर से आपके स्वास्थ्य की कामना करती हूँ । यही अभिलाषा है कि आप जैसे सम्माननीय साहित्य के घनेरे वट वृक्षों की  शीतल छाया में नए रचनाकारों को प्रेरणा और मार्गदर्शन मिलता रहे और आप साहित्य की इस बगिया में ऐसे ही सुंदर- सुंदर पुष्प खिलाती रहें ।
सुनीता काम्बोज

सम्पर्क- sunitakamboj31@gmail.com



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थके पंछी