सुनीता काम्बोज
सूनी - सूनी लगती है
तीज की बहार
आकर सखियाँ झूला झूले
डाली रही पुकार
कोई कजरी गीत सुना दी
अमुवा रहा निहार
सूनी-सूनी--
गुमसुम सा है आँगन सारा
ना महके घर द्वार
ना हाथों में चूड़ी खनके
ना सोलह शृंगार
सूनी- सूनी---
ढूँढे अखियाँ छन - छन पायल
चुनरी घोटेदार
सखियाँ की चंचलता में वो
मीठी सी तकरार
सूनी-सूनी---
छीन लिया है किसने सब कुछ
मन में करूँ विचार
आधुनिकता ने निगला सब
करके तीखा वार
सूनी-सूनी--
सुनीता काम्बोज
(चित्र गूगल से साभार)
सूनी - सूनी लगती है
तीज की बहार
आकर सखियाँ झूला झूले
डाली रही पुकार
कोई कजरी गीत सुना दी
अमुवा रहा निहार
सूनी-सूनी--
गुमसुम सा है आँगन सारा
ना महके घर द्वार
ना हाथों में चूड़ी खनके
ना सोलह शृंगार
सूनी- सूनी---
ढूँढे अखियाँ छन - छन पायल
चुनरी घोटेदार
सखियाँ की चंचलता में वो
मीठी सी तकरार
सूनी-सूनी---
छीन लिया है किसने सब कुछ
मन में करूँ विचार
आधुनिकता ने निगला सब
करके तीखा वार
सूनी-सूनी--
सुनीता काम्बोज
(चित्र गूगल से साभार)
तीज की बहुत शुभकामनाएँ सखी !
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