चित्र-गूगल से साभार
ग़ज़ल
छाई चारों ओर निराशा
बदली रिश्तों की परिभाषा
कलियाँ उन्मेषण से डरती
मिलती है हर बार दिलासा
अर्घ्य सभी देने को तरसें
दिख जाए बस चाँद जरा-सा
हाल पूछने आते सारे
घूम रहा वो अच्छा-खासा
दोनों की अब ख़ूब जमेगी
मैं भी प्यासा, तू भी प्यासा
दूषित वसुधा सहमी-सहमी
नव ग्रह खोज रहा है नासा
सदा "सुनीता" अभिमानी का
पलट दिया क़ुदरत ने पासा
©सुनीता काम्बोज
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