भजन (चौपाई छंद में )1
गीता बसती है हर मन में
ये सुख भरती है जीवन में
मोहमाया में अर्जुन जकड़ा
उसने हाथ श्याम का पकड़ा
रण में बैठा घुटने टेके
धनुष बाण धरती पर फेके
ताकत नहीं रही थी तन में
तब गीता का ज्ञान सुनाया
संशय मन का तब मिट पाया
अमर आत्मा नश्वर काया
अलग बड़ी है जग की माया
फूल खिले हैं मन उपवन में
गीता सत्पथ दिखलाती है
जीना हमको सिखलाती है
ये जीवन जलता अंगारा
गीता बहती अमृत धारा
इसकी खुशबू है जन-जन में
सुनीता काम्बोज©
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