Sunday, August 8, 2021

जीवन की तपती माटी पर

जीवन की तपती माटी पर
शीतल बूँदों के जैसी माँ
इस जग की बहती नदिया में
है ठहरी लहरों जैसी माँ

गंगा सी पावन लगती है
माँ रोली चन्दन लगती है
माँ त्याग समर्पण सेवा है
पतझर में सावन लगती है
रेतीले सूखे मरुथल में
ये मीठे झरनों जैसी माँ


माँ इक बच्चे की लोरी है
लगती रेशम की डोरी है
पढ़ लेती मन के भावों को
उससे कब होती चोरी है
रोशन करती घर आँगन को 
पूजा के दीपों जैसी माँ

काँटों को पुष्प बनाती है
हँस कर पीड़ा सह जाती है
भावों की मीठी तान बनी
मन मे अहसास जगाती है
नादान परिंदा नीड़ बुने
पेड़ों की शाखों जैसी माँ

देखा भरपूर चमकता है
मुख पर इक नूर चमकता है
कँगना बिछुए पायल बिंदिया
माथे सिंदूर चमकता है
मेहँदी की खुशबू के जैसी 
शगुनों के गीतों जैसी माँ

सुनीता काम्बोज©
                   चित्र -गूगल से साभार

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