माहिया छंद
1.
चुप बैठा सन्तोषी
चाहे जग वाले
कहते उसको दोषी ।
2.
हारा ये उसका मन
बिन आत्मबल के
निस्तेज हुआ जीवन
3.
छोड़ा है चन्दन को
अपयश के काँटें
घायल करते मन को
4.
ऐसा बदला लेगा
तुझको ये तेरा
अब क्रोध जला देगा ।
5.
राहें आसान हुई
जब से अपनो की
मुझको पहचान हुई
6.
मिलने का दिन आया
इस पल को मैने
कठिनाई से पाया ।
7.
तुम बैठे सोच रहे
पतझर के साये
फूलों को नोच रहे ।
8.
दलदल जैसा छल है
बिन अनुशासन के
ये जीवन जंगल है ।
सुनीता काम्बोज©
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