Sunday, August 8, 2021

जिन गीतों में मनमीत नहीं

गीत -1

जिन गीतों में मनमीत नहीं

उन गीतों को मैं क्यों गाऊँ

जो तेरी ओर नहीं मुड़ता

उस पथ पर कैसे मुड़ जाऊँ


हर सफर तुम्हीं से शुरू हुआ

तुम पर ही आकर रुकता है

बेचैन  परिंदा ये मन का

तेरे दर जाकर रुकता है

प्रीतम का प्रेम बसा मन में

पगली  दीवानी कहलाऊँ


जब तुम होते हो साथ खड़े

हर ओर उजाला रहता है

मेरे दिल की इस घाटी में

एक प्रीत का दरिया बहता है

इन नैनों में तुम बसते हो

अंतर मन में तुमको पाऊँ

 
मन उपवन के इन फूलों पर

केवल अधिकार तुम्हारा है

मेरे इन गीतों में प्रियवर

बसता बस प्यार तुम्हारा है

सागर से मिलने को व्याकुल

मैं बनकर नदिया लहराऊँ

सुनीता काम्बोज©
                चित्र-गूगल से साभार

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