Tuesday, March 21, 2017

ग़ज़ल

ग़ज़ल
काम रख तू सिर्फ़ अपने काम से
ज़िन्दगी कट जाएगी आराम से

मुझसे नज़रें  मत मिला ओ अजनबी
डर जरा इस इश्क़ के अंजाम से

ज़िक्र मेरा क्या हुआ वो चल पड़े
इस क़दर जलते है मेरे नाम से

कर दिया मदिरा ने घर बर्बाद जो
वो ख़फ़ा सा हो गया है जाम से

भूख  से माँ बाप घर में मर गए
लौट कर आया वो चारों धाम से

अब वही निकले बड़े ज्ञानी यहाँ
देखने में जो लगे थे आम से

उसने देखा ओर नज़रें फेर ली

जिन के ख़ातिर हम हुए बदनाम से 

सुनीता कम्बोज 

Tuesday, March 14, 2017

ये नफ़रत का असर

        
 ग़ज़ल
सुनीता काम्बोज 

 ये नफरत का असर कब तक रहेगा 
है सहमा सा नगर कब तक रहेगा

हक़ीकत जान जाएगा तुम्हारी
ज़माना बेखबर कब तक रहेगा

बगावत लाज़मी होगी यहाँ पर
झुका हर एक सर कब तक रहेगा

हैं इक दिन हार जाएगी ये लड़कर
हवाओं का ये डर कब तक रहेगा

जमीं पर लौट के आना ही होगा
बता आकाश पर कब तक रहेगा

यहाँ फिर लौट आएँगी बहारें 
मेरा सूना सा घर कब तक रहेगा

लगा लो फिर सुनीता बेल बूटे
पुराना सा शज़र कब तक रहेगा
 -0-

Sunday, March 12, 2017

दोहे



दोहे 
सुनीता काम्बोज
1
आँखें होती आइना ,सब देती हैं बोल ।
मन के सारे भेद को , ये देती हैं खोल ।।
2
भाई भाई कर रहे , आपस  में तकरार ।
याद किसी को भी नही , राम भरत का प्यार ।।

3
अपने मुख से जो करे , अपना ही गुणगान ।
अंदर से है खोखला , समझो वो इंसान ।।
4
ज्ञान उसे था कम नहीं , था बेहद बलवान।
पर रावण को खा गया , उसका ही अभिमान ।।
5
नदी किनारे तोडती, आता है तूफ़ान।
नारी ,नदिया एक- सी, मर्यादा पहचान ।।
6
ढल जाएगा एक दिन ,रंग और ये रूप ।
शाम हुई छिपने लगी ,उजली उजली धूप ।।
7
माला लेकर हाथ में , कितना करलो जाप ।
काटेंगे शुभकर्म ही,तेरे सारे पाप ।।
8
घायल है माँ भारती , नींद छोड़कर जाग
नफरत की लपटें उठीं , बढ़ती जाती आग ।।
-०-

थके पंछी