Tuesday, March 14, 2017

ये नफ़रत का असर

        
 ग़ज़ल
सुनीता काम्बोज 

 ये नफरत का असर कब तक रहेगा 
है सहमा सा नगर कब तक रहेगा

हक़ीकत जान जाएगा तुम्हारी
ज़माना बेखबर कब तक रहेगा

बगावत लाज़मी होगी यहाँ पर
झुका हर एक सर कब तक रहेगा

हैं इक दिन हार जाएगी ये लड़कर
हवाओं का ये डर कब तक रहेगा

जमीं पर लौट के आना ही होगा
बता आकाश पर कब तक रहेगा

यहाँ फिर लौट आएँगी बहारें 
मेरा सूना सा घर कब तक रहेगा

लगा लो फिर सुनीता बेल बूटे
पुराना सा शज़र कब तक रहेगा
 -0-

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावभरी ग़ज़ल !!

    ReplyDelete

थके पंछी