ग़ज़ल
सुनीता काम्बोज
ये नफरत का असर कब तक रहेगा
है सहमा सा नगर कब तक रहेगा
हक़ीकत जान जाएगा तुम्हारी
ज़माना बेखबर कब तक रहेगा
बगावत लाज़मी होगी यहाँ पर
झुका हर एक सर कब तक रहेगा
हैं इक दिन हार जाएगी ये लड़कर
हवाओं का ये डर कब तक रहेगा
जमीं पर लौट के आना ही होगा
बता आकाश पर कब तक रहेगा
यहाँ फिर लौट आएँगी बहारें
मेरा सूना सा घर कब तक रहेगा
लगा लो फिर सुनीता बेल बूटे
पुराना सा शज़र कब तक रहेगा
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बहुत सुन्दर भावभरी ग़ज़ल !!
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया सखी
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