Wednesday, December 13, 2017

हाइकु


हाइकु 

1

दो अर्थी बातें
कभी नहीं  समझी
जीवन बीता ।
2
जाओ मत यूँ
रुक जाओ जरा -सा
बची हैं साँसें ।
3
मन तिजोरी
सपने और यादें
सब हैं कैदी ।
4
विस्फोट हुआ
ये जीवन बिखरा
कैसे समेटूँ ।
5
तुमको पाया
तोड़ सब दायरे
तुम न मिले ।
6
लूटने आई
दर्द की ये आहट
मेरा क्यों चैन ।

सुनीता काम्बोज 

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