कुछ डूबेंगे बीच में, कुछ उतरेंगे पार।
इक काग़ज़ की नाव में, बैठा है संसार।।
मरी हुई संवेदना, पत्थर दिल इन्सान।
चिपकाए फिरता रहा, होठों पर मुस्कान।।
सिर पर छल का देख लो, टिका हुआ है ताज ।
खुदगर्जी करने लगी, आज दिलों पर राज।।
मत कर, केवल बैठ कर, तू औरो की बात ।
बदलेंगे हालात ये, खुद से कर शुरुआत।।
जीवन संध्या हो गई, बदले नहीं उसूल।
अब भी खुशबू दे रहे, ये सूखे-से फूल।।
चाल-चलन बदला यहाँ, बदले रीत-रिवाज ।
खोई उस पहचान को, ढूँढ़ रहे हम आज।।
सुनीता काम्बोज©
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