गीत
गर तुम वीणा नहीं बजाते
फिर बोलो हम कैसे गाते
सपनों का निर्माण न होता
संसय का निर्वाण न होता
अगर नहीं ये कलियाँ खिलती
हम खुशबू कैसे फैलाते
गूँज रहा हैं मन का आँगन
कानों में बजती है छनछन
मन में ये अहसास न जगते
खुद को फिर हम जान न पाते
अमलतास था मन का सोया
आदित उदय हुआ तम खोया
प्रेम डोर ना बाँधी गीत
दूर गगन में हम उड़ जाते
सुनीता काम्बोज©
No comments:
Post a Comment