जयकारी छंद
मेहनत से बनती तकदीर
मन में रखना पड़ता धीर
शोहरत है किसकी जागीर
इसको हासिल करते वीर
पग -पग पर बड़ी ढलान
निश्चय अपने मन में ठान
राहों में है तपती धूप
ढलना है इसके अनुरूप
आएगी तब स्वर्णिम भोर
मन हो जाए भाव विभोर
दो दिन मत समझो खेल
धीरे -धीरे बढ़ती बेल
गर ज्यादा होगी रफ्तार
गिरने को रहना तैयार
सोच समझ कर चुन तू राह
गर अम्बर छूने की चाह
सुनीता काम्बोज©
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