दोहे
सुनीता काम्बोज
1
आँखें होती आइना ,सब देती हैं बोल ।
मन के सारे भेद को , ये देती हैं खोल ।।
2
भाई भाई कर रहे , आपस में
तकरार ।
याद किसी को भी नही , राम भरत का प्यार ।।
3
अपने मुख से जो करे , अपना ही गुणगान ।
अंदर से है खोखला , समझो वो इंसान ।।
4
ज्ञान उसे था कम नहीं , था बेहद बलवान।
पर रावण को खा गया , उसका ही अभिमान ।।
5
नदी किनारे तोडती, आता है तूफ़ान।
नारी ,नदिया एक- सी, मर्यादा पहचान
।।
6
ढल जाएगा एक दिन ,रंग और ये रूप ।
शाम हुई छिपने लगी ,उजली उजली धूप ।।
7
माला लेकर हाथ में , कितना करलो जाप ।
काटेंगे शुभकर्म ही,तेरे सारे पाप ।।
8
घायल है माँ भारती , नींद छोड़कर जाग ।
नफरत की लपटें उठीं , बढ़ती जाती आग ।।
-०-
बहुत सार्थक रचना बहन
ReplyDeleteसादर प्रणाम आदरणीय भैया जी हार्दिक आभार
Deleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति सखी ..हार्दिक बधाई !!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद प्रिय ज्योत्स्ना शर्मा जी
DeleteNice post ... keep sharing this kind of article with us......visit www.dialusedu.blogspot.in for amazing posts ......jo sayad hi aapne kbhi padhe ho.....ek bar jarur visit kren
ReplyDeleteसादर धन्यवाद । जी अवश्य
Deleteबहुत सही ...
सादर धन्यवाद कविता जी
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