Sunday, March 12, 2017

दोहे



दोहे 
सुनीता काम्बोज
1
आँखें होती आइना ,सब देती हैं बोल ।
मन के सारे भेद को , ये देती हैं खोल ।।
2
भाई भाई कर रहे , आपस  में तकरार ।
याद किसी को भी नही , राम भरत का प्यार ।।

3
अपने मुख से जो करे , अपना ही गुणगान ।
अंदर से है खोखला , समझो वो इंसान ।।
4
ज्ञान उसे था कम नहीं , था बेहद बलवान।
पर रावण को खा गया , उसका ही अभिमान ।।
5
नदी किनारे तोडती, आता है तूफ़ान।
नारी ,नदिया एक- सी, मर्यादा पहचान ।।
6
ढल जाएगा एक दिन ,रंग और ये रूप ।
शाम हुई छिपने लगी ,उजली उजली धूप ।।
7
माला लेकर हाथ में , कितना करलो जाप ।
काटेंगे शुभकर्म ही,तेरे सारे पाप ।।
8
घायल है माँ भारती , नींद छोड़कर जाग
नफरत की लपटें उठीं , बढ़ती जाती आग ।।
-०-

9 comments:

  1. बहुत सार्थक रचना बहन

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    1. सादर प्रणाम आदरणीय भैया जी हार्दिक आभार

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  2. वाह बहुत खूब

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति सखी ..हार्दिक बधाई !!

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    1. सादर धन्यवाद प्रिय ज्योत्स्ना शर्मा जी

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