Monday, March 7, 2022

Sunday, November 7, 2021

मेरी भाषा

किसी पुस्तक में पढ़ी एक पँक्ति
सदैव तैरती मेरे मन में
कि- अगर मिटाना हो कोई देश
समाप्त करनी हो किसी देश की संस्कृति
अगर धूल करना हो, युग-युगांतर का ज्ञान
तो केवल एक ही निदान
सबसे पहले
मिटा दो उसकी भाषा
स्वयं चली आएगी निराशा
क्योंकि -
एक भाषा ही है
जो देती पहचान
कि हम अज्ञानी हैं या महान
हम किन विभूतियों की  है सन्तान
हमारे साथ यही तो घटा
नवयुग जा रहा परम्पराओं से कटा
मन-मस्तिष्क पर  ऐसा किया अघात 
अपनी भाषा लगने लगी ओछी
और दूसरी भाषाओं  में 
दिखाई देने लगी कुछ बात
किसी भाषा से कोई अनबन नहीं मेरी
क्योंकि  सभी है सरस्वती माँ का उपहार
परन्तु
देश की उन्नति, ज्ञान, कला-साहित्य का
निज भाषा करती विस्तार
बदल दे तुम्हारे मन को, एक कविता
यह नहीं सम्भव 
ऐसी कविताएँ कितनी पढ़ी
औऱ भुला दी 
जब
हृदय की भावनाएँ 
बनेगी क्रांतिकारी
तब  होगा नया उजाला
जागृत होगा जब देश-प्रेम
 तब भाषा पर लिखी  कविता की
होगी नहीं  आवश्यकता
तब तक रहेगी लेखनी प्रयासरत
जब तक मिलता नहीं निज पथ

सुनीता काम्बोज






Thursday, October 28, 2021

माँ नमस्तुते


माँ नमस्तुते
कमलासना, वरदायिनी 
वीणा मधुर कर धारिणी 
भयहारिणी, भवतारिणी, 
माँ नमस्तुते, माँ नमस्तुते

वागीश्वरी, माँ शारदा 
जगदम्बिका, चिरयोगिनी
मनमोहिनी, दुखहारिणी, 
माँ नमस्तुते, माँ नमस्तुते 

माँ कष्ट-शोक निवारिणी
भवमोचिनी, योगेश्वरी 
परमेश्वरी, भुवनेश्वरी
माँ नमस्तुते, माँ नमस्तुते


माँ बलप्रदा, माँ अम्बिके
कात्यायनी, नारायणी
ज्वाला, अभय सुखदायिनी 
माँ नमस्तुते माँ, नमस्तुते

सुरपूजिता, हे हंसिनी
हंसासना, माँ मालिनी  
वसुधा, रमा, माँ भारती 
माँ नमस्तुते, माँ नमस्तुते

श्वेताम्बरी, बुद्धिप्रदा
हे ज्ञान की मन्दाकिनी
मधुराग वीणा वादिनी  
माँ नमस्तुते, माँ नमस्तुते

कर पुस्तिका,  हे पाटला 
कल्याणकारी, अर्पणा   
वाणी, भवानी, मोक्षदा,
माँ नमस्तुते, माँ नमस्तुते
सुनीता काम्बोज

Sunday, August 29, 2021

धुएँ के उस पार कहानी संग्रह


पुस्तक का नाम- धुएँ के उस पार
विधा-कहानी संग्रह
लेखिका-रेखा रोहतगी
पृष्ठ संख्या-96
मूल्य- 100.00 ₹
प्रकाशक-अमृत प्रकाशन 1/5170, लेन न.-8
बलबीर नगर, शाहदरा, दिल्ली -110032
दूरभाष-22325468

नई सोच का विस्तार, " धुएँ के उस पार"

‌हर जीवन एक कहानी संग्रह है। लेखक जब अपने और दूसरों के जीवन मे झाँकता है तब अनेक कहानियाँ लेखक के हृदय में विस्तार पाने लगती है। जब कहानीकार कल्पनाओं की नाव में सवार हो जाता है तब अपने आस-पास बिखरे पात्रों को कड़ियों में जोड़ने लगता है । सदैव भावुक हृदय मार्मिक घटनाओं से प्रभावित होता है थोड़ी - सी फुर्सत के पलों में वह अनुभव कहानी का रूप ले लेते हैं । जिन्हें  पढ़कर पाठक  उनकी कहानियों के साथ जुड़ाव महसूस करने लगते है । गद्य एक गम्भीर विधा है अगर गद्य पाठक को बाँधने में असमर्थ है तो वह कहानी में छुपे कथ्य को ग्रहण नहीं कर सकता । जिस प्रकार कविता और  गीत  में प्रवाह आवश्यक है उसी प्रकार कहानी विधा में प्रवाह और कथ्य प्रभावशाली होना आवश्यक है। बहुआयामी प्रतिभा की धनी आदरणीया रेखा रोहतगी जी साहित्य जगत का प्रसिद्ध नाम है उन्होंने  अनेक उत्कृष्ट साहित्यिक पुस्तकों का उपहार साहित्य जगत  को दिया  गद्य और पद्य की सिद्धहस्त  साहित्यकारा रेखा जी का कहानी संग्रह "धुएँ के उस पार" पढ़ने का सुयोग बना ।  संग्रह में सोलह कहानियाँ हैं  ।  जब मैंने संग्रह पढ़ना शुरू किया तो पढ़ती ही चली गई ।काफी लंबे समय के बाद इस तरह की कहानियाँ पढ़ने को मिली । सबसे पहले दो चोटी वाली कहानी पढ़ी जिसमे लेखिका ने बड़ी संजीदगी से समाज को दर्पण दिखाने का प्रयास किया है ।" आज तो हद हो गई कमबख्त अपने बाल ही कटा आई " लेखिका जवान होती बेटी के प्रति माँ की चिंता व्यक्त करती है ।  पर  साधरण दो चोटी वाली लड़की संस्कारो की दहलीज लाँघ जाती है । लेखिका परिवर्तन और संस्कारों की जंग को तटस्थ भाव से देखती है  तथा समाज कहानी द्वारा समाज को  सन्देश  देती है। लेखिका के पास कम शब्दों में गहन संवेदना प्रकट करने का गुण है जिसके कारण कहानी पढ़ते समय कभी भी ऊब नहीं होती। "पराई पीर"  स्त्री जीवन के इर्द-गिर्द घूमती कहानी है आज जहाँ कुछ कहानियाँ नारी के पतित रूप को  प्रदर्शित कर समाज को अश्लीलता परोस रही हैं । वही लेखिका की कहानियाँ हर वर्ग के लिए शिक्षाप्रद और रुचिकर हैं । लेखिका की कहानियों में व्यप्त संकेतात्मकता पाठक को  बिन कहे भी बहुत कुछ कह जाती हैं । " आई बड़ी मुझे समझाने वाली, खुद इतनी पढ़ी लिखी समझदार हैं, डॉक्टर हैं  और अपना घर सुलग रहा है तो धुआँ भी उन्हें दिखाई नहीं देता" लेखिका की यह कहानी मन को झझकोर जाती है यह कहानी  अनपढ़ और पढ़ी  लिखी भारतीय नारी के प्यार समर्पण की दास्तान है उसके अनन्त कष्टों की आह भी अन्तस तो छू जाती है । "ग़लतफ़हमी" कहानी पुरुष के भटकते क़दम दर्शाती है तो नारी के विशाल व्यक्तिव के दर्शन भी करवाती गई । आखिर,  कुछ टूट गया कहानियाँ सामाजिक विद्रपताओं का बोध कराती हैं । लेखिका ने अगर नारी के प्रेम समर्पण को प्रकट किया है तो पुरुष के मनोभावों को प्रकट करने में भी सफल रही है।  कभी लेखिका स्त्री मन की उत्ताल तरंगों का स्पर्श करती है कभी कर्मठ पुरुष की अनकही भावनाओं को उकेरती प्रतीत होती है।" साहिल" कहानी द्वारा  जया और नितिन के द्वारा लेखिका पुरुष भावनाओं का एक नया दृष्टिकोण लेकर प्रस्तुत हुई है।" वायदा "कहानी
बहुत  कशमकश से भरी कहानी है माता-पिता का वायदा और एक तरफ प्रेम ,  जीवन मे अनेक बार ऐसा होता है जब हम एक वस्तु को पकड़ने का प्रयास करते है तो दूसरे हाथ की वस्तु छूट जाती है। समय की धारा में बहुत कुछ  बह जाता है।  लेखिका ने " विज्ञापन कहानी द्वारा समाज के अनैतिक रीति-रिवाजों पर प्रहार किया है।  वर्षों से नारी शोषित रही है सदियों से सती प्रथा का दंश झेलती आई नारी ने नए परिवर्तन का शंखनाद किया है । संग्रह की अंतिम कहानी "धुएँ के उस पार" करुणा एवं हृदयेश की बहुत हृदयस्पर्शी  कहानी है एक विदुर पुरुष का जब कुँवारी लड़की से विवाह हो जाता है तो वह अपने मे मन उसके चरित्र को लेकर अनेक भ्रांतियाँ बना लेता है परंतु जब करुणा की डायरी सारे रहस्य खोल देती है तो हृदयेश के मन का सारा सन्देह आँखों से बह  जाता है यह कहानी भावनाओं का समंदर समेटे प्रतीत होती है । रेखा रोहतगी जी का यह कहानी संग्रह मेरी पसंदीदा पुस्तकों में से एक है । मैं उनकी सृजनशीलता  से बहुत प्रभावित हूँ । उनके मनोभाव  में एक ऐसी कशिश है जो उनके लेखन को अगल पहचान देती है। साहित्य साधिका का आशीष हम सब पर सदैव बना रहे इसी कामना के साथ हार्दिक मंगलकमनाएँ

सुनीता काम्बोज


Sunday, August 22, 2021

इंसान की भूख

बेचारा इंसान 
भूखा ही जन्मा
भूखा ही लौट गया
इंसान की भूख
इंसान को डराती है
अंतड़ियाँ सिकुड़ जाती है
अगर किस्मत से कभी
पेट भर गया
नई भूख उपजती है
लाख डकार के बाद भी
खोपड़ी नहीं रजती है
जीवन भर इंसान
भूख से लड़ता है
कभी तन की भूख
कभी मन की भूख
कभी धन की भूख
सब कुछ पाकर भी
सब कुछ पाकर भी
तृप्त न हो पाया
भूखा जन्मा
भूख लिए मर गया ।
सुनीता काम्बोज©

Thursday, August 19, 2021

परिंदों को रोक


परिंदों को
रोक नहीं सकती
सरहदें
उनकी है सारी धरती
और सारा आसमान
उनका है
सारा समुंदर
सारी नदियाँ
कभी वे बैठ जाते
मन्दिरों के गुम्मद पर
कभी मस्जिद के मीनारों पर बैठ
सुनते आजान
कभी गुरुद्वारे के द्वार पर उड़ आते
कभी चर्च की ओर मुड़ जाते
जो भी प्यार लुटाता 
उसी के हो जाते 
निर्धन, धनवान 
जो भी देता
भाव से खाते
प्रेम का जो गीत परिंदे गाते
हम बदकिस्मत इंसान
उसे सुन नहीं पाते ।
सुनीता काम्बोज©

                 चित्र-गूगल से साभार



जग के पालनहार

जग के पालनहार, ले अवतार, अवध में आएँ हैं
बरसे अमरित धार,  ले अवतार , अवध में आएँ हैं

दशरथ द्वार बजे शहनाई
शिशु बन रुदन करें रघुराई
भार भूमि का तारण आए
अवधपुरी के भाग जगाए
दीप जलें घर द्वार, ले अवतार, अवध में आएँ हैं

मर्यादा का सार बताने
पिता वचन का मान बढ़ाने
प्रेम, धर्म, सत्य की मूरत
मृदु वाणी और  मोहिनी मूरत
सबको करने पार, ले अवतार, अवध में आएँ हैं

भटके जग को शुभ मति देने
ठहरे जीवन को गति देने
सबके जीवन मे सुख भरने
सब पतितों को पावन करने
जाऊँ मैं बलिहार, ले अवतार
सुनीता काम्बोज ©
               चित्र-गूगल से साभार

राम मंदिर बन रहा है

राम मंदिर बन रहा है, खूब सुंदर बन रहा
जिसने सबके घर बनाए, उनका भी घर बन रहा है

सज रही नगरी अयोध्या, गान मंगल हो रहे है
बज रही शहनाई मधुरम, फूल बादल बो रहे है
जिस धरा जन्मे विधाता, उस धरा ओर बन रहा है

संग सीता के विराजेगें, यहाँ पर राम प्यारे
चरणों देखे हैं उनके, हमने तीर्थ धाम सारे
बून्द का उसकी दया से, अब समंदर बन रहा है

आक कलियुग में लगे ज्यों,रामराज्य आ रहा है
छू रहा नीले गगन को,धरम ध्वज लहरा रहा है
प्यास जन जन की बुझेगी, मुक्ति का दर बन रहा है

आ गए प्यारे गजानन, आ गए लक्ष्मीपति जी
विश्वकर्मा आ गए हैं या गए शंकर सती भी
झूमते बजरंग बाला  ये शुभावसर बन रहा है

राम जी सृष्टि के पालक, राम घट-घट में समाए
देखने मन्दिर की शोभा, आज तीनों लोक आए
फूल भक्ति के खिलेंगे, वो सरोवर बन रहा है

सुनीता काम्बोज©
                         चित्र- गूगल से साभार


आज का रचनाकार

Sunday, August 8, 2021

दोहे



दोहे

रब  तो केवल एक है ,कहते सारे वेद ।
पर मानव करता रहा,आपस में मतभेद ।।

उसने ऐसे तीर से ,सीना डाला भेद ।
भर पाएँगे ना कभी, मेरे दिल के छेद ।

निकला घर से रोज ही, करने कारोबार।
खुद को  ही ठगता रहा,मुस्काकर हर बार ।।

निर्धन का, धनवान का, यहाँ बराबर मान ।
जात-पात कब जानता, ऐसा है शमशान ।।

हिस्सा अपना रोज ही ,लेती हूँ मैं नाप ।
माटी में मिल ढूँढती , खुद को अपने आप 

फूलों के कारण हुई,काँटो से तकरार।
काँटों में फँस ओढ़नी, होती  तारमतार ।।

पाती लेकर घूमता , पढ़े नहीं सन्देश।
बाहर मीठा बोलता,घर में करे कलेश।।

मर्यादा की डोर हो, हो करुणा का हार ।
दया, प्रेम  से भी करो, इस मन का शृंगार ।।

पतझर में कैसे बनूँ, मैं मिलने का गीत।
अधर लगे हैं काँपने, मनवा है भयभीत।।

अदा किया है चाव से,सबने ही किरदार ।
कोई खुशियाँ बाँटता, कोई ये अंगार ।।


मनवा बदले रोज ही, कितने ही परिधान
इन रोगों की है दवा, केवल सच्चा ज्ञान।।


चम्पा रोये केतकी, रोया बड़ा गुलाब,।
आँधी ने बिखरा दिए,आकर सारे ख्वाब।।

वर्षों बीते आज मैं, लौटा हूँ जब गाँव ।
बूढ़े पीपल की मुझे, मिली न ठंडी छाँव ।।

हर एक मुश्किल रास्ता,हो जाता आसान ।
दृढ़ निश्चय से टूटती ,राहों की चट्टान ।।


ये कुदरत का खेल है, या माली की भूल ।
बागों में कुछ मिल गए,  बिन खुशबू के फूल ।।

सुनीता काम्बोज©
                        चित्र-गूगल से साभार

माहिया छंद

माहिया छंद
1.
चुप बैठा सन्तोषी
चाहे जग वाले 
कहते उसको दोषी ।
2.
हारा ये उसका मन 
बिन आत्मबल के
निस्तेज हुआ जीवन 
3.
छोड़ा है चन्दन को 
अपयश के काँटें
घायल करते मन को
4.
ऐसा बदला लेगा
तुझको ये तेरा
अब क्रोध जला देगा ।
5.
राहें आसान हुई 
जब से अपनो की
मुझको पहचान हुई
6.
मिलने का दिन आया 
इस पल को मैने
कठिनाई से पाया ।
7.
तुम बैठे सोच रहे 
पतझर के साये
फूलों को नोच रहे ।
8.
दलदल जैसा  छल है 
बिन अनुशासन के 
ये जीवन जंगल है ।

सुनीता काम्बोज©
               चित्र-गूगल से साभार

जीवन की तपती माटी पर

जीवन की तपती माटी पर
शीतल बूँदों के जैसी माँ
इस जग की बहती नदिया में
है ठहरी लहरों जैसी माँ

गंगा सी पावन लगती है
माँ रोली चन्दन लगती है
माँ त्याग समर्पण सेवा है
पतझर में सावन लगती है
रेतीले सूखे मरुथल में
ये मीठे झरनों जैसी माँ


माँ इक बच्चे की लोरी है
लगती रेशम की डोरी है
पढ़ लेती मन के भावों को
उससे कब होती चोरी है
रोशन करती घर आँगन को 
पूजा के दीपों जैसी माँ

काँटों को पुष्प बनाती है
हँस कर पीड़ा सह जाती है
भावों की मीठी तान बनी
मन मे अहसास जगाती है
नादान परिंदा नीड़ बुने
पेड़ों की शाखों जैसी माँ

देखा भरपूर चमकता है
मुख पर इक नूर चमकता है
कँगना बिछुए पायल बिंदिया
माथे सिंदूर चमकता है
मेहँदी की खुशबू के जैसी 
शगुनों के गीतों जैसी माँ

सुनीता काम्बोज©
                   चित्र -गूगल से साभार

सरहद पर है... चौपाई छंद

चौपाई छंद में गीतिका 

सरहद पर है गोलाबारी
करें सियासत खद्दरधारी

फिर सड़कों में गढ्ढ़े भारी
पैसा कहाँ गया सरकारी

चमचों ने ही नाव चलाई
डूब गई फिर से खुद्दारी

गलियों में बारूद बिछा है
घर की कर लो चारदीवारी

अब ये कौन खजाना लूटे
चोर करेंगे पहरेदारी

कैसे दर्शन कर लूँ तेरा
खाली है अब जेब हमारी

आज सुनीता दिन वो आया
जब दुशमन ने बाजी हारी

सुनीता काम्बोज©
                 चित्र-गूगल से साभार

जिन गीतों में मनमीत नहीं

गीत -1

जिन गीतों में मनमीत नहीं

उन गीतों को मैं क्यों गाऊँ

जो तेरी ओर नहीं मुड़ता

उस पथ पर कैसे मुड़ जाऊँ


हर सफर तुम्हीं से शुरू हुआ

तुम पर ही आकर रुकता है

बेचैन  परिंदा ये मन का

तेरे दर जाकर रुकता है

प्रीतम का प्रेम बसा मन में

पगली  दीवानी कहलाऊँ


जब तुम होते हो साथ खड़े

हर ओर उजाला रहता है

मेरे दिल की इस घाटी में

एक प्रीत का दरिया बहता है

इन नैनों में तुम बसते हो

अंतर मन में तुमको पाऊँ

 
मन उपवन के इन फूलों पर

केवल अधिकार तुम्हारा है

मेरे इन गीतों में प्रियवर

बसता बस प्यार तुम्हारा है

सागर से मिलने को व्याकुल

मैं बनकर नदिया लहराऊँ

सुनीता काम्बोज©
                चित्र-गूगल से साभार

छम -छम बारिश की बूंदों ने

छम-छम बारिश की बूँदों ने,  ये विरहन भी दहका दी है
सुप्त  आग जो जलती मन में, इस सावन ने सुलगा दी है

सावन में ये तन मन जलता
चुभती मन को ये शीतलता
बढ़ता जाता ताप विरह का
ये सावन भी मुझको छलता
आज हवा ने फिर आँगन में,तेरी खुशबू बिखरा दी है

कोयल स्वर मन भटकाते हैं
यादों के भँवरे गाते हैं
बार-बार हट पर आ जाता
मन को कितना समझाते हैं
बरस रही छम-छम बूँदों ने, कँगना पायल छनका दी है

तुम बिन मेरा सावन प्यासा 
मैं प्यासी मेरा  मन प्यासा
प्यासा टीका प्यासी पायल
चूड़ी प्यासी कंगन प्यासा
सोई प्यास पिया थी मन में,इस सावन ने भड़का दी है

सुनीता काम्बोज©
                चित्र-गूगल से साभार

सावन आया












सावन आया बादल छाए
झूम- झूम ये मनवा गाए

अम्बर ने ये राग बजाया
थिरके नीलगगन में बिजली
शोर करे जियरा धड़काए
पगली ये सावन में बिजली 
बारिश छम- छम गीत सुनाए


शीतल पवन छेड़ सुर गाए
मन्द सुगन्ध धरा महकाए 
तरुवर झूमें, गिरवर झूमें
बदली गागर को छलकाए
सूखा झरना आस लगाए

रंग बदलता अम्बर नीला
मोर नाचता रंग रँगीला
फूल फूल की प्यास बुझी है
उपवन लगता आज सजीला 
कोयल मादकता बिखराए
सुनीता काम्बोज©



                    चित्र-गूगल से साभार

थके पंछी